लव-मैंरिज
कथा साहित्य | लघुकथा अमित राज ‘अमित’31 Dec 2015
मैं सुबह-सुबह अख़बार पढ़ने में व्यस्त था। तभी श्रीमती जी ने मेरे पास आकर कहा- "अजी! सुनते हो?"
मैंने अख़बार से नज़रें हठाकर कहाँ- "सुन रहा हूँ, कहों।"
"अपने पड़ोसी रमेश जी का लड़का लव-मैरिज कर रहा है। आपने सुना क्या?"
"हाँ, इसमें हैरानी की क्या बात है? कर रहा है, ख़ुद की ज़िन्दगी है, कुछ भी करें। लव-मैंरिज तो आज के युग की परम्परा हो गई है, बहुत से लोग कर रहे हैं, वो अकेला थोड़े ही कर रहा है।"
"ऐसी भी क्या परम्परा है, मैं तो इसके ख़िलाफ़ हूँ, जिनके परिवार संस्कारी नहीं होते, उनके लड़कें ऐसा सब कुछ करते है।"
"आप भूल रही हैं, कुछ माह पहले आपके छोटे भैया ने भी लव-मैंरिज की थी, उसके बारे में तो आपने कभी कुछ नहीं कहा?"
मेरी बात सुनकर श्रीमती जी बोली- "चलो छोड़ो, हमें क्या? कोई कुछ भी करें, अपनी-अपनी ज़िन्दगी है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ग़ज़ल
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं