सीख
कथा साहित्य | लघुकथा अमित राज ‘अमित’14 Nov 2014
"अल्ला के नाम पर दे दे माँजी.... "
"क्या चाहिए?"
"दस-बीस रूपये।"
"क्या करेगा?"
"दो-तीन दिन से भूखा हूँ, थोड़ी पेट भराई हो जायेगी।"
"हट्ठा-कट्ठा गबरू नौजवान होकर दूसरों के आगे हाथ फैलाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती, लानत है तुम पर और तुम्हारी ज़िन्दगी पर। मेहनत कर, अल्ला तेरी झोली ऐसे भर देगा कि फिर कभी दूसरों के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"
वह लज्जित होकर चुपचाप आगे बढ़ गया।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ग़ज़ल
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं