बड़ी ज़ोर को सखी ऊ नचैय्या
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत सपना मांगलिक10 Mar 2016
मैं करूँ ता ता थैया बिरज में
कभी छल से कभी अपने बल से
कभी इतते कभी घेरे उतते
डारे होरी को ऐसो फगैय्या
मोरे पीछे पड़ो रे ततैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
बदरी सो सखी कारो कारो
प्रेम पगी मोपे नज़र ऊ डारो
कपटी नैनन को तीर चलैय्या
पकड़े धोखे से मोरी कलैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
लाज शर्म वाय कछु ही ना आवे
गोपियन संग ऊ तो रास रचावे
डारे ऐसी उनके गलबहियाँ
मारे शर्म के मैं मर जईंयाँ
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
तन रोके और मन ललचावे
मोरे हृदय ऐसी प्रीत जगावे
बसे मनवा में सखी मन बसैय्या
कैसे कहूँ री ऊ मेरो सैंय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
बड़ी ज़ोर को सखी ऊ नचैय्या
मैं करूँ ता ता थैय्या बिरज में
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
नज़्म
कविता - हाइकु
गीत-नवगीत
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं