रँगे-हाथ
कथा साहित्य | लघुकथा सपना मांगलिक28 Jan 2015
मिसेज़ भल्ला धोबिन को सर्फ़ देते हुए बोलीं, “आजकल बड़ी जल्दी-जल्दी सर्फ़ ख़त्म हो रहा है एं? कहीं चुरा–वुरा तो नहीं ले जाती वर्ना इतनी जल्दी सर्फ़ ख़त्म होने का सवाल ही नहीं उठता।”
धोबिन ने कहा, “कैसी बात करती हो बीबीजी? हम ग़रीब हैं मगर चोर नहीं।”
मिसेज़ भल्ला ने धमकी दी, “किसी दिन रँगे हाथ पकड़ लूँगी ना तब सारी साहूकारी निकल आएगी। बड़ी आई डायलोग मारने वाली—हम ग़रीब हैं मगर चोर नहीं।” मुँह बनाकर मिसेज़ भल्ला ने धोबिन की नक़ल उतारी। इतने में पतिदेव ने ड्राइंग रूम से आवाज़ लगते हुए कहा, “अजी सुनती हो मेरी कल वाली क़मीज़ धुलने दे दो।”
मिसेज़ भल्ला कमरे से क़मीज़ लेने गयी तभी मुख्य द्वार की घंटी बजी कोई मिलने वाला था। जिसकी सूचना मिसेज़ भल्ला को देने धोबिन कमरे की ओर गयी। अन्दर का दृश्य देख धोबिन की आँखें खुली की खुली रह गयीं। मिसेज़ भल्ला क़मीज़ की जेब से पाँच-पाँच सौ के कुछ नोट हड़बड़ी में अपने ब्लाउज़ में छिपाने की कोशिश में लगी थीं।
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