मेरी पलकों की नमी
शायरी | नज़्म सपना मांगलिक23 Feb 2015
मेरी पलकों की नमी,
तेरी पलकों से बह जाती है
जो कहता नहीं तू, वो
तेरी आँखें कह जाती हैं
हर क़तरे में लहू के शामिल है,
कैसे बताऊँ उसे
सिल जाते हैं होंठ हरबार,
और ज़ुबाँ दग़ा दे जाती है
कोई तो बात होगी जो मिलके
भी ना मिला वो मुझे
ये मोहब्बत का ही बूता है,
कि हर सितम सह जाती है
बनाये थे महल ख़्वाबों के,
सब ताश से बिखर गए
आरजू तमाम आजकल
अपनी, घरौंदे रेत सी ढह जाती है
ज़ह्नसीब हैं वो, हासिल
होती है मोहब्बत जिनको
बदनसीब ‘सपना’ कि
अक़्सर कमनसीब रह जाती है
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