बहुत हो चुका अब . . .
शायरी | नज़्म सपना मांगलिक20 Mar 2015
बहुत हो चुका अब हमें
इन्साफ़ मिलना चाहिए
खदेड़कर धुँध स्याह,
नभ साफ़ मिलना चाहिए
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार,
भ्रष्ट ही सबके विचार
हर एक जन अब इसके,
ख़िलाफ़ मिलना चाहिए
भड़काए नफ़रत के शोले,
सरज़मीं पर तुमने बहुत
ज़र्रा–ज़र्रा हमें इसका अब,
आफ़ताब मिलना चाहिए
झूठे वादे झूठे इरादे यहाँ,
अब नहीं चल पायेंगे
बच्चे बच्चे का पूरा,
हर ख़्वाब मिलना चाहिए
उखाड़ फेंको इस तंत्र को
स्वतंत्र हो तुम अगर
लोकतंत्र का हमें अब,
पूरा स्वाद मिलना चाहिए
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