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बेटा कौन? 

सड़क पर चलते हुए मैं थोड़ी असुविधा महसूस कर रही थी। वजह थी मेरे पीछे चलने वाला एक गधा और उसका बूढ़ा मालिक जो उसे डाँट फटकार कर सीधे चलने को कह रहा था। मगर गधा अपने मालिक की आज्ञा का उल्लंघन कर कभी दायें तो कभी बायें सर हिलाता मस्ती में चल रहा था। मैं गधे से बचने के लिए बायें होती तो गधा भी बायें हो जाता, दायें होती तो वह भी दायें हो जाता। मैं चिड़चिड़ा कर ग़ुस्से में गधे वाले से बोली, “भैया आपका गधा आपके वश में नहीं है कृपया इसे वश में कीजिये।”

गधा वाला बुरा मानते हुए बोला, “बहनजी यह गधा नहीं मेरा बेटा है। भोलू नाम है इसका।”

मैंने कहा, “कैसा बेटा है आपका आपकी बात तक नहीं मान रहा है?” 

गधे वाला गंभीरता से बोला, “मगर साथ तो चल रहा है न बीबीजी वर्ना सगे बेटे तो अक़्सर बुढ़ापे में साथ छोड़ देते हैं। यह बेज़ुबान तो एक ज़ुबान वाले का फ़र्ज़ निभा रहा है।”

बूढ़े गधे वाले की आँखों की नमी ने मुझे निरुत्तर कर दिया। 

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