बे-वफ़ा हो या बा-वफ़ा हो तुम
शायरी | ग़ज़ल इरफ़ान अलाउद्दीन1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
ज़िन्दगी में सवाल आता है
ख़ुदकुशी का ख़्याल आता है
नींद में हम ने घर सजा डाला
क्या तुम्हें ये कमाल आता है
सोचता हूँ न जाने मैं भी क्या
इश्क़ में क्या ज़वाल आता है
बे-वफ़ा हो या बा-वफ़ा हो तुम
मेरे दिल में सवाल आता है
कैसे हो सकता है यहाँ पर ये
हिज्र में क्या जमाल आता है
जान जाएगी सनम दुनियाँ भी
ग़ज़ल के साथ फ़ाल आता है
ज़वाल= उतार, ह्रास; हिज्र= जुदाई, विरह, अकेलापन; जमाल= सौंदर्य, सुन्दरता; फ़ाल= अच्छे बुरे शगुन बताना, शकुन, सगुन
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डॉ पदमावती 2023/11/16 05:55 PM
सुंदर भाव । शब्द भाव का अनुसरण कर रहे हैं । अच्छा चित्र खींचा है । बहुत बधाई और शुभकामनाएँ । डॉ पदमावती