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बे-वफ़ा हो या बा-वफ़ा हो तुम

 
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून 
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
 
2122 1212 22
 
ज़िन्दगी में सवाल आता है 
ख़ुदकुशी का ख़्याल आता है
 
नींद में हम ने घर सजा डाला 
क्या तुम्हें ये कमाल आता है
 
सोचता हूँ न जाने मैं भी क्या 
इश्क़ में क्या ज़वाल आता है
 
बे-वफ़ा हो या बा-वफ़ा हो तुम 
मेरे दिल में सवाल आता है
 
कैसे हो सकता है यहाँ पर ये 
हिज्र में क्या जमाल आता है
 
जान जाएगी सनम दुनियाँ भी 
ग़ज़ल के साथ फ़ाल आता है
 
ज़वाल= उतार, ह्रास; हिज्र= जुदाई, विरह, अकेलापन; जमाल= सौंदर्य, सुन्दरता; फ़ाल= अच्छे बुरे शगुन बताना, शकुन, सगुन 
 

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टिप्पणियाँ

डॉ पदमावती 2023/11/16 05:55 PM

सुंदर भाव । शब्द भाव का अनुसरण कर रहे हैं । अच्छा चित्र खींचा है । बहुत बधाई और शुभकामनाएँ । डॉ पदमावती

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