नूर-ए-ख़ुदा
शायरी | ग़ज़ल इरफ़ान अलाउद्दीन1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन, मुस्तफ़इलुन, मुस्तफ़इलुन
2212, 2212, 2212
नूर-ए-ख़ुदा मौजूद है अब भी वहाँ
नूर-ए-सहर मौजूद है अब भी वहाँ
बक्काह वाले समझते तो कुछ नहीं
आब-ए-गुहर मौजूद है अब भी वहाँ
यसरीब वालो जान लो क्या है वहाँ
बाब-ए-असर मौजूद है अब भी वहाँ
मूसा खड़ा है आज भी उस ही जगह
ज़ौक़-ए-नज़र मौजूद है अब भी वहाँ
नायाब है वो तोहफ़ा देखो ज़रा
बाब-ए-हुनर मौजूद है अब भी वहाँ
नूर-ए-ख़ुदा=ईश्वर का तेज; नूर-ए-सहर=प्रातःकाल का उजाला; आब-ए-गुहर=मोती की चमक; यसरिब=मदीना का पुराना नाम; बाब-ए-असर=प्रार्थना में तपस्या की वह अवस्था जहाँ से उसमें प्रभाव उत्पन्न हो और स्वीकृति के योग्य हो जाए; ज़ौक़-ए-नज़र=किसी वस्तु को परखने का क्षमता; बाब-ए-हुनर=प्रतिभा का द्वार
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