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मैं इश्क़ का परस्तार हूँ

2212,     2212,     2212,     2212 
 
मैं इश्क़ का परस्तार हूँ मैं प्यार में गिरफ्तार हूँ 
इक ग़ज़ल है इक शेर है हाँ मैं वही फ़नकार हूँ 
 
यूँ तो मुझे ग़म कुछ नहीं बाज़ार में मैं यार हूँ 
क्यो देखते हो इस तरह हाँ मैं वही बीमार हूँ
 
अहल-ए-शहर तो सहम से गए हैं मुझे देख कर के
हैरान क्यों हो तुम सभी क्या मैं नई दीवार हूँ
 
मुझ को उड़ानी ख़ाक है थोड़ा रुको तुम तो यहाँ 
क्यों देर से तुम आए हो क्या मैं नया आज़ार हूँ
 
सारा जहाँ है पास में मुस्कान है रुख़सार पे
वादे निभा मैं यूँ रहा जैसे नई सरकार हूँ
 
परस्तार=उपासक, पूजा करने वाला; अहल-ए-शहर=नगरवासी; आज़ार=तकलीफ़, जंजाल, दुःख, बीमारी; रुख़्सार/रुख़सार=कपोल, गाल, कल्ला

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