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ज़िंदगी

2122     2122     212
 
सिमटकर तू हाथ में आ ज़िंदगी 
कुछ तसद्दुक़ तू दिखा दे ज़िंदगी
 
ख़्वाहिशें मेरी अधूरी हैं कुछ अभी
कुछ तताबुक़ तू दिखा दे ज़िंदगी
 
बे-त'अल्लुक़ यूँ न कर के जा मुझे
कुछ तहक़्कुक़  तू दिखा दे ज़िंदगी
 
ख़त्म ना कर तू मुझे अब इस तरह
कुछ तवाफ़ुक़ तू दिखा दे ज़िंदगी
 
मैं अकेला भटकता हूँ शहर में 
कुछ त'अल्लु  तू दिखा दे ज़िंदगी
 
तसद्दुक़=कृपा, अनुकम्पा, भेंट, बलिदान; तताबुक़=समानता, सदृशता, बराबरी, तुलना, उपमा; बे-त'अल्लुक़=बेलगाव, जिसे कोई लगाव न हो, किसी प्रकार का सम्बन्ध न हो, जो दख्ल न दे, स्वतंत्र भाव; तहक़्कुक़=सत्यापन, किसी चीज़ को वास्तविकता से साबित करना, सही ढंग से जानना, सही जानना; तवाफ़ुक़=परस्पर एक जगह रहना, एक दूसरे के अनुकूल होना, एक दूसरे की सहायता करना, एक जैसा होना, सदृशता; त'अल्लुक़=सम्बन्ध, संपर्क, लगाव,स्वजनता, रिश्तेदारी

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