दरिया
शायरी | नज़्म अंकुर मिश्रा1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
वो दरिया मैं किनारा हुआ करता था
साहिल पे मिलना हमारा हुआ करता था
रात कटती थी उसके पहलू में मेरी
सुबह तक वो हमारा हुआ करता था
मैं देखा करता था ख़्वाब एक नाज़नीन के
कभी वो शख़्स हमारा हुआ करता था
बन बैठा है जो आज ज़ीनत किसी और कि
कभी मुक़द्दर हमारा हुआ करता था
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