दर्पण
काव्य साहित्य | कविता प्रियांशी मिश्रा1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
यह दर्पण प्यारा दर्पण है
करता सब सत्य समर्पण है
जब-जब उदास हो बैठूँ मैं
तब यह उदास हो जाता है
जब स्मिति मुखड़े पे खिल जाती
तब मुझे देख हरसाता है
जब अपना रूप निहारूँ मैं
तब मुझे देख इतराता है
यह दर्पण प्यारा दर्पण है
करता सब सत्य समर्पण है
जब मैं रूठी बैठी रहती
यह रूठा मुख दिखलाता है
गर मेरी हॅंसी छूट जाती
तब हॅंस-हॅंस मुझे हॅंसाता है
यह दर्पण प्यारा दर्पण है
सब सत्य-सत्य कह जाता है
जब घमंड से इतराती मैं
यह मुझे घमंडी कहता है
मैं एक अकेली रहती जब
तब यह साथी बन जाता है
यह दर्पण प्यारा दर्पण है
करता सब सत्य समर्पण है।
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