क़लम की ख़्वाहिश
काव्य साहित्य | कविता प्रियांशी मिश्रा1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
है क़लम की ख़्वाहिश कि
कुछ नायाब लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
कुछ लिखूँ और कामयाब रहूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
दिल की ‘हर इक’ बात लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
अपने ‘सब’ जज़्बात लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘दिन सवेर रात’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
धूप वसंत बरसात लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
अमावस, चाॅंदनी रात लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
जुगनुओं की बारात लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘दिनकर की पीतिमा’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘नीलांबर की नीलिमा’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
आस और विश्वास लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘हरतरफ़’ उजास लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
होली छठ दिवाली लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘ऋतुएँ मतवाली’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
त्योहारों का जुलूस बनूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘खेत खलिहान पूस’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
सौरमंडल जगमग लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
रेंगते कीट डगमग लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘नूपुर के झंकार’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
किंकिणी के ताल लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘चित्र विचित्र आकार’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
बीतते काल लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
कंकड़ पर्वत‘नद-नदी’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
गाँव, देहात गली-कूची लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘पेंशन वेतन झंझट’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
पंचायत की जमघट लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
शूरवीरों का शौर्य लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
चोला चालुक्य-मौर्य लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
सदियों की गाथा लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
पुरातन अमर कथा लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
सरगम की रागिनी लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘कमलदल मालिनी’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘देवनागरी-सी लिपियाँ’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘सुकुमारी कलियाँ’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘नलिनी-कुमुदिनी’ लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
यमुना मंदाकिनी लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
बस्तियों में आबाद करूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
‘पिंजरों से आज़ाद उड़ूँ’ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
जो भी लिखूँ ख़ासम-ख़ास लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
सब नायाब लिखूँ मैं
है क़लम की ख़्वाहिश कि
कुछ लिखूँ और नायाब रहूँ मैं
मशहूर और कामयाब रहूँ मैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
्प्रो. प्रतिभा राजहंस 2025/09/17 11:06 PM
प्रियांशी मिश्रा जी, आपकी कविता ' कलम की ख्वाहिश ' बहुत अच्छी कविता है। आपने अपनी कविता के माध्यम से एक कलमकार की दिली ख्वाहिश को अभिव्यक्ति दी है। आपका अंदाजे बयां बहुत खूबसूरत है। और आपकी ख्वाहिश बेजोड़ है।इससे अधिक कोई कलमकार क्या ख्वाहिश रख सकता है भला? बहुत खूब। लिखती रहैं, छपती रहैंऔर खूब खूब बडाई पाती रहें। ढेरों बधाइयाँ।