हरि-हर
काव्य साहित्य | कविता प्रियांशी मिश्रा1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
हरि लक्ष्मी
हर गौरी संग विराजे
हरि वैकुण्ठ
हर कैलाश में विराजे
हरि संग कौमोदिकी
हर के संग त्रिशूल साजे
हरि धरे सारंग
हर पिनाक को धारे
हरि का शंख
हर का डमरू बाजे
हरि के ललाट मोरपंख
हर पर चंद्रमा साजे
हरि के साथ शेषनाग
हर संग नंदीबाबा साजे
हरि पर पीताम्बर
हर पर बाघम्बर साजे
हरि-हर एक दूजे के पूरक
दोनों मेरे मन मंदिर में विराजे
दोनों को भज हो जाऊँ पूरन
मुदित हरिहर मन में विराजे
मुदित हरिहर मन में विराजे।
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