मातृभूमि की सुगंध
काव्य साहित्य | कविता प्रियांशी मिश्रा15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
भीगी भीगी माटी में है मातृभूमि की सुगंध
शत्रु चाहे कोई भी हो हमारी आवाज़ है बुलंद
अगर हम हों एक और शत्रु हों अनेक
फिर भी भारतवासी लड़ेंगे आज़ादी की जंग
आज़ाद हिन्दुस्तान रहे ख़ून नसों में चाहे न बहे
घर-घर में तिरंगा फहरे हर मन में तिरंगा लहरे
जय माँ भारत रोर हो जय माँ भारत शोर हो
रात हो कि भोर हो सब जगह सब ओर हो
भीगी भीगी माटी में है मातृभूमि की सुगंध
शत्रु चाहे कोई भी हो हमारी आवाज़ है बुलंद
चीन हो पाकिस्तान हो पड़ोसी खालिस्तान हो
फिर भी भारतवासी लड़ेंगे आज़ादी की जंग
भीगी भीगी माटी में है मातृभूमि की सुगंध।
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