सर्वज्ञ मोहन
काव्य साहित्य | कविता प्रियांशी मिश्रा15 Jul 2025 (अंक: 281, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
रुक्मिणी सत्यभामा संग
अनेक पत्नियों के हुए पति
नारी सम्मान करना सिखाया
शेषशायी हे लक्ष्मी पति
मोर मुकुट पीताम्बर धारी
ख़ूब लुभाया मन वनमाली
वंशीधुन पर सबको नचाया
बोल उठे सब कृष्ण मुरारी
कालिय को नाच नचाया
उँगली पर गोवर्धन उठाया
सब असुरों को मार गिराया
हे मुरारि असुर संहारी
मुष्टि चाणूर कंस मद हारी
द्रौपदी की लाज बचाई
अपमानों से ऊपर उठकर
यदुकुल का गौरव लौटाया
माखनचोर ग्वाला छलिया
रणछोड़ तक सब नाम धराया
हम अबोध तुमको क्या जानें
स्वयं सर्वज्ञ मोहन बन आया।
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