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दिलबर तेरे ख़्याल का पैकर नहीं हूँ मैं

221 2121 1221 212
 
दिलबर तेरे ख़्याल का पैकर नहीं हूँ मैं
इंसाँ बड़ा हूँ आम सिकंदर नहीं हूँ मैं 
 
हल्के में ले लिया है तो इक बात बोल दूँ
आसानियों से यार मयस्सर नहीं हूँ मैं 
 
ग़लती हुई गुनाह हुआ क्या हुआ बता 
क़ाबिल तेरे यक़ीन के क्यूँकर नहीं हूँ मैं 
 
कट तो रही हूँ आप की तलवार से मगर
होता है दर्द मुझको भी पत्थर नहीं हूँ मैं
 
खोलेगा कौन द्वार तेरे वास्ते 'सरू'
बतला दिया है मैंने कि घर पर नहीं हूँ मैं

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