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मुहब्बत इनायत दुबारा न कर दे

122  122   122   122
 
मुहब्बत इनायत दुबारा न कर दे 
मेरी आँख को बहता दरिया न कर दे
 
मुहब्बत से रखते हैं दूरी बनाकर
अकेले सही हैं वो तन्हा न कर दे
 
गली से मेरी तुम गुज़रना संभलकर 
मेरी दीद तुमको दीवाना न कर दे
 
मैं भूली हूं जिनको बड़ी मुद्दतों में
कहीं ये हवा फिर शनासा न कर दे
 
अंधेरों की मुश्किल से आदत हुई है 
कहीं ज़िंदगी अब उजाला न कर दे
 
मुझे खौफ़ है वक़्त की गर्दिशों से
मेरी ख्वाहिशों का तमाशा न कर दे
 
चले हैं जिसे हम मुकम्मल समझकर 
वही प्यार हमको अधूरा न कर दे

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टिप्पणियाँ

Manisha 2022/03/19 09:58 PM

Kya kahne , sachmuch ek lajawaab peshkash Har sher mukammal apne haq ki baat kahta hua.

Vipin 2022/03/19 09:55 PM

Bahut sundar Last 2 lines are simply superb

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