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मुहब्बत और अखुव्वत के गुलो गुलशन खिलाने हैं

1222  1222   1222     1222
 
मुहब्बत और अखुव्वत के गुलो गुलशन खिलाने हैं
नई राहें बनानी हैं नये सपने सजाने हैं
 
बजाओ कोई ऐसी धुन कि हर कोई थिरक उट्ठे
उसी धुन पर कई नग़मे हमें भी गुनगुनाने हैं
 
हमारी सोच ही हमको बनाती है नया वरना
वही है आसमां धरती वही मंज़र पुराने हैं
 
उजालों के नये दीपक नई उम्मीद के तारे
निगाहों में बसाने हैं दिलों में जगमगाने हैं
 
सबक़ जो भी हैं सिखलाये समय ने, भूलो मत उनको
कमाये तजरुबे हैं जो, वही असली ख़ज़ाने हैं

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टिप्पणियाँ

REKHA RANI 2022/01/26 05:11 PM

sach mein dil ko chhoo lenr wali aur Motivational gazal. saru ji ko dheron daad ....

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