हे! कुमुदिनी . . .
काव्य साहित्य | कविता चंद्रभान सितारे15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
हे! कुमुदिनी, तू दुःख मत कर
क्यों करती हो तुलना अपनी;
जबकि तू है उसकी जननी।
उसके प्रति कैसे हीन भाव आया;
जिसने तुमको अपनी प्रिया बनाया।
वारिज से कम तेरा मान नहीं;
फिर क्यों? ख़ुद अपना अपमान किया।
अब द्वेष भाव का राग छोड़;
समभाव व प्रेम का गुणगान कर।
हे! कुमुदिनी, तू दुःख मत कर . . .।
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