हृदय परिवर्तन
कथा साहित्य | लघुकथा उपेन्द्र यादव15 May 2024 (अंक: 253, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
माँ ने बेटे से कहा बहू को बाज़ार ले जाकर एक साड़ी दिलवा दो। माँ के इस तरह हृदय परिवर्तन को देखकर बेटे ने अचम्भित होकर पूछा, “पर क्यों?” इस पर माँ ने कहा, “बेटा, दरअसल मैं सोसायटी के लोगों के साथ हरिद्वार जा रही हूँ। वहाँ से चारधाम यात्रा की शुरूआत करनी है। मुझे आने में कई दिन लग सकते हैं। ऐसे में पता नहीं ये घर का क्या हाल करेगी? बिल्कुल कबाड़ बनाकर रख देगी। मेरी ग़ैरमौजूदगी में इसे सही से रखने का ये एक तरीक़ा है।” उसी दिन शाम को बेटे ने अपनी पत्नी को शॉपिंग कराई।
माँ भी दो दिन बाद चारधाम यात्रा पर चली गईं। जब माँ वापस लौट कर आईं तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। घर बिल्कुल क़रीने से सजा था। सब कुछ सुव्यवस्थित था। शाम को बेटे के ऑफ़िस से आते ही माँ ने पूछा, “बेटा, क्या बात है? पहले तो यह बहुत लापरवाह थी। पर इस बार तो इसने दिल जीत लिया। लगता है, साड़ी काम कर गई।”
बेटे ने अनमने ढंग से कहा, “हाँ, माँ! आप सही कह रही हो। इस बात को तो मैं नोटिस ही नहीं किया था। पर सच में घर का बिल्कुल कायाकल्प हो गया है।”
रात में खाना खाने के बाद पति ने अपनी पत्नी से पूछा, “क्या बात है? तुमने तो घर की बिल्कुल नुहार ही बदल दी। सब कुछ एकदम चमका दिया है। माँ, तुमसे बहुत ख़ुश हैं।”
इस पर पत्नी ने कहा, “यार, जब माँ जी गईं, तो मेरा हृदय परिवर्तन हो गया। मैंने सोचा, अब माँ जी के कितने दिन बचे हैं। वो तीर्थयात्राओं पर जाने लगीं। कुछ दिन के बाद मर जाएँगी। फिर सब कुछ मुझे ही सम्हालना पड़ेगा। तो फिर अभी से क्यों ना सब कुछ सम्हाल लूँ?”
ये बात सुनकर वो अपनी माँ और पत्नी में हो रहे हृदय परिवर्तन को देखकर आवाक् रह गया। उसे समझते देर नहीं लगी कि माँ का हृदय परिवर्तन सत्ता बचाने के लिए हो रहा है और पत्नी का हृदय परिवर्तन सत्ता पाने के लिए हो रहा है। अर्थात् सबके मूल में बस सत्ता है। बाक़ी सारे उपक्रम इसी सत्ता के निमित्त मात्र हैं। न माँ को बहू को साड़ी दिलाने की हसरत है और न ही बहू को माँ के कहे अनुसार घर की देख-रेख करने में इन्टरेस्ट है। ये तो बस सत्ता है, जिसने दो विपरीत ध्रुवों को एक साथ, एक विचारधारा पर ला खड़ा कर दिया है।
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