पुरुष ऐसे ही होते हैं
काव्य साहित्य | कविता उपेन्द्र यादव1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मैं तब तक लापरवाह हूँ
जब तक तुम्हारी शिकायतें हैं
सुनो, अपनी शिकायतें कभी बन्द मत करना
मैं उस दिन के लिए तैयार नहीं हूँ
कि तुम मुझे देखकर अनदेखा करो
मैं ऐसे ही बेपरवाही में जीने का आदी हूँ
क्योंकि मुझे तुम्हारे होने का गुमान है
ये स्वछंदता और उद्दंडता सब तुम्हारी नेमत है
मैं जानता हूँ, तुम कभी रूठोगी नहीं
हर बार मुझे मना लोगी
यही तो मेरी बेफ़िक्री का कारण है
तुम्हारी टीस भरी चुभती निगाहों में
मैं प्यार का वो पहलू हूँ
जिसे तुमने मान लिया है कि
‘पुरुष ऐसे ही होते हैं’
पर कभी-कभी डरता हूँ
कि सच में अगर तुमने मुँह फेर लिया
तो मेरा क्या होगा?
तब मेरी सारी बेपरवाही धुआँ हो जाएगी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कहानी
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं