मुसलमान और वो
काव्य साहित्य | कविता उपेन्द्र यादव1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मुसलमान उसके लिए
रसद और पानी है
खाद 'औ बीज है
ताना व बाना है
डर एवं भय है
कार्य तथा व्यापार है
वह मुसलमान का डर दिखाता है
और राज करता है
इस बीच एक बहुत बड़ा तबक़ा
यह सोचता है कि
उसके और मुसलमान के बीच वह कहाँ है
उसकी समस्याओं का निदान क्या है
उसकी ग़रीबी, भुखमरी और लाचारी
का उपाय क्या है
तभी भीड़ से जयश्रीराम-जयश्रीराम
का ज़ोर का नारा गूँजता है
और इस शोर में एक आम आदमी का
मुद्दा तिरोहित हो जाता है
वह चाहता है ज़ोर से बोलना
पर प्रभु के नाम के आगे
उसकी आवाज़ बेबस हो जाती है
हर बार की तरह इस बार भी
लोकतंत्र जीत जाता है
और एक आम आदमी
बुरी तरह हार जाता है
जीवन की द्यूतक्रीड़ा में
पछाड़ खाकर धराशायी होना ही
आज के मनुष्य की नियति है
जिसमें सपनों के सौदागर नेता
हमेशा से विजयी रहे हैं।
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टिप्पणियाँ
Rakesh Kumar yadav 2024/05/01 09:46 PM
लाजवाब और बेहतरीन
Rakesh Kumar yadav 2024/05/01 09:45 PM
लाजवाब है कविता संग्रह , मुसलमान और वो , पड़ कर बहुत ही समझदारी महसूस हुआ
कृपया टिप्पणी दें
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उपलब्ध नहीं
आदित्य यादव 2024/05/01 09:54 PM
समय से संवाद करती कविता। सच कहने की दुस्साहस करती कविता।