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कवि का पावस

 

रिमझिम बूँदों की फुहार हो 
घनघोर काली घटा में 
बिजली का दीदार हो 
मन में सॄजनता का उबाल हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
हरियाली में बगुलों का विचरण हो
मेघों का उमड़ना हो, 
वृष्टि का आसार हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
मेहँदी रचे गोरे हाथ हों 
हरे काँच की चूड़ियाँ हों 
झूले में झूलता सावन हो 
सखियों की ठिठोली हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
राखी को फूली न समाती 
बहना हो, राखी ही भाई 
का गहना हो, रक्षा का 
उपहार हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
मोर का नृत्य हो, पपीहा के 
पिहू में स्वाती का इंतज़ार हो 
मन मयूर का नृतन हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
शिव का शृंगार हो, घंटों 
का नाद हो। 
नमो शिवाय की गूँज हो 
गंगाजल का अर्घ्य हो 
तो लिखने का मन करता है। 
 
जमुना का सैलाब हो 
अविरल बरसात हो 
वासुदेव के कृष्ण की याद हो 
तो लिखने का मन करता है। 

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