समय की चाल
काव्य साहित्य | कविता निर्मला कुमारी15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
सुन्दरता का अभिमान न कर
महल भी खण्डहर हो जाता है॥
बरसाती नदी का शोर भी
एक दिन थम जाता है,
सर्वस्व छीन ले जाऊँगी
ये दर्प भी चूर हो जाता है
सागर की लहरों में स्वर
भी उसका गुम हो जाता है,
सुंदरता का अभिमान न कर
महल भी खण्डहर हो जाता है॥
हर ऋतु में गरजता है वो
समुद्र को ग़ुरूर न तनिक छूता है,
काल के परिवर्तन से यूँ
महलों को क़ब्र बनते देखा है,
सुंदरता का अभिमान न कर
महल भी खण्डहर हो जाता है॥
स्वाभिमान कर अभिमान न कर
जब सम्मान यश होता हासिल
शुक्ल पक्ष के बाद प्रकृति का
कृष्ण पक्ष भी आता है,
कोई साथ नहीं होता है
जब समय चाल बदलता है,
सुंदरता का अभिमान न कर
महल भी खण्डहर हो जाता है ll
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