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टैगोर की पड़ोसन

 
पतझड़ी शृंगार की 
प्रतिमा थी टैगोर की 
पड़ोसन, 
जिसके निहारने से 
कदाचित कुविचार न आये 
क्यों ऐसी पूजनीय थी? 
टैगोर की पड़ोसन। 
 
अपने आन्तरिक आवेगों 
को कभी शब्दों में 
न उतार पाये 
क्यों ऐसी सौम्य थी? 
टैगोर की पड़ोसन। 
 
सखा माधव की काल्पनिक 
प्रियतमा हेतु अपने प्रणय युक्त 
शब्दों की कविता गढ़ते थे वो 
क्यों ऐसी विलक्षण थी? 
टैगोर की पड़ोसन। 
 
ज्योतिर्विद की दृष्टि में 
उदित होते नक्षत्र की जिज्ञासा 
तुल्य वैधव्य में भी रमणीय 
मूरत वह 
क्यों ऐसी उज्ज्वल नक्षत्र थी? 
टैगोर की पड़ोसन। 
 
मानव हृदय में बसने की 
थी जो उसकी ललक 
शून्य आँखों में भी दिखती 
थी वो झलक 
क्यों ऐसी मनोरथी थी? 
टैगोर की पड़ोसन।
 
टैगोर के हृदय में उस पीड़ा 
का एहसास कि “क्या वैधव्य 
वेदना मात्र है”
दृढ़ निश्चय किया कि विधवा विवाह 
का पथ प्रशस्त करूँगा 
वैधव्य का दुःख किसीको 
नहीं सहने दूँगा 
क्या अप्रचलित प्रथा की 
प्रचलित प्रेरणा थी? 
टैगोर की पड़ोसन। 
 
नवीन माधव को किया तैयार 
विभिन्न तर्क देते हुए 
तैयार हुआ नवीन उनसे 
ये वचन लेते हुए 
लिखते रहेंगे आप मेरी 
प्रियतमा के लिए क्योंकि 
वही तो है 19 नंबर में रहने 
वाली आपकी पड़ोसन। 

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