तेरा संविधान
काव्य साहित्य | कविता निर्मला कुमारी1 Aug 2023 (अंक: 234, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
एक ही संविधान पीठ (अन्तरात्मा) है
और है एक ही न्यायधीश, क्यों सेशन
उच्च और सर्वोच्च बनाना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
तेरी अदालत मेंं कोई वकालत
नहीं, तेरी सजा कि कोई ज़मानत
नहीं, क्यों ऐसा विधान बनाना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
तेरी लाठी मेंं कोई आवाज़ नहीं
होती, क्यों, जज को हथौड़ा
ठकठकाना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
पूर्व अपराध के सलाह देती है
अंतरात्मा, क्यों बाद अपराध के
वकील करना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
जहाँ न कोई वकील है, न कोई
बहस, फिर क्यों कोर्ट की रस्म
निभाना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
तेरे यहाँ नहीं माँगी जाती दया याचिका
यहाँ क्यों राष्ट्रपति चुनना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
आते ही संसार में शुरू कर देता है
उल्टी गिनती, नहीं सुनता किसी की
विनती, चाहे जज हो या अपराधी,
क्योंकर मृत्यु को दंड का नाम
देना पड़ा,
क्या कमी थी तेरे संविधान मेंं
जो नया संविधान लिखना पड़ा।
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