गर ज़िद बाँध ले
काव्य साहित्य | कविता निर्मला कुमारी1 Jun 2024 (अंक: 254, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मुश्किल नहीं है कुछ भी गर
ज़िद बाँध ले।
गिरना उठना फिर गिरकर उठने
क्या चींटी से नहीं सीखा तूने
अरे ज़िन्दगी तो संघर्ष है फिर
क्यों परवाह करता है बावले,
मुश्किल नहीं है कुछ भी गर
गाँठ बाँध ले॥
सीख उस माउंटेन मैन (दशरथ माझी) से
जिसने एक हथौड़े छेनी से
पहाड़ की सड़क बना डाली
जिसमें कोई विघ्न आड़े न आ
पाए ऐसी गाँठ बाँध ले।
मुश्किल नहीं है कुछ भी गर
ज़िद बाँध ले॥
असफलता और दुख को बना
दोस्त क्योंकि दोस्त ही है
जो तुझे अकेला नहीं छोड़ेगा
हैरान कर दे उस बोली को
जो बोलता तुझे बोली है
मन वो विचार ठान ले।
मुश्किल नहीं है कुछ भी गर ज़िद
बाँध ले॥
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