याद कर लेना
काव्य साहित्य | कविता निर्मला कुमारी15 Oct 2025 (अंक: 286, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मेरी बातें मेरे अल्फाज़
कभी सतायें तो
मुझे याद कर लेना।
मेरी कहानी लिखते लिखते
क़लम ठहर जाए तो
मुझे याद कर लेना।
मेरे बयानों की याद से
किसी से किया वादा
टूट जाए तो
मुझे याद कर लेना।
रोज़ रुलाया तुमने
अपनी हरकतों से
कोई मेरी हरकत न
पसंद आई हो तो
मुझे याद कर लेना।
मैंने भी खाई थी क़समें
तोड़े थे वादे
कभी ज़रूरत पड़े मेरी तो
मुझे याद कर लेना।
प्यार के दरिया में
उतर भी न पाई थी
तुम रोज़ डूबते ही गए
कभी पैर फिसल जाए तो
मुझे याद कर लेना।
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