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नववर्ष के शुभागमन पर पाँच सजलें

 

-एक-
 
हरेक वर्ष कुछ ऐसे आए, साथ-साथ सब क़दम उठें, 
मानव-मानव को पहचाने, प्रेम के प्याले छलक उठें। 
 
हवा मुकम्मिल दुनिया की, गर बदले तो यूँ बदले, 
बस्ती बस्ती ख़ुशहाली हो, बाग़-बग़ीचे महक उठें। 
 
सूरज यूँ धरती पर उतरे, आँगन-आँगन धूप खिले, 
सुबह सवेरे बैठ मुँडेरी, चीं-चीं चिड़िया चहक उठें। 
 
हरिया को रोटी मिल जाए और धनिया को पैंजनिया, 
छालों भरे हाथ को चूड़ी, घायल पायल छनक उठें। 
 
हिंदू हो या मुस्लिम कोई, कोई ईसाई, सिख या बौद्ध, 
आपस में यूँ 'तेज' मिलें सब, सबके चेहरे चमक उठें। 
 
-2-
 
आग़ाज़ है नए वर्ष का पैग़ाम लिख भेजो, 
पाती कोई हम ग़मज़दों के नाम लिख भेजो। 
 
मुद्दत हुई है रश्क से सिज़दा किए हुए, 
तक़दीर में मेरी भी कोई रात लिख भेजो। 
 
ज़माने से जब उठ ही गया अमनो-सुकून, 
कुछ तो होगा आदमी का दाम लिख भेजो। 
 
याँ रास्ता-दर-रास्ता मंज़िल परस्त है, 
मंज़िल का मेरे आज तुम अंजाम लिख भेजो। 
 
जब से गए हैं ‘तेज’ वो तबियत नहीं खिली, 
कि तुम ही उसके नाम से सलाम लिख भेजो। 
 
-3-
 
हर पल नया सवाल हुआ है, 
इतना फ़क़त कमाल हुआ है। 
 
नए दौर की चकाचौंध में, 
जीना बहुत मुहाल हुआ है। 
 
लोकतंत्र की छाती पर चढ़, 
हरसू ख़ूब धमाल हुआ है। 
 
इंसा के हाथों से बेशक, 
इंसा आज हलाल हुआ है। 
 
प्रशासन अब राजनीति का, 
सबसे बड़ा दलाल हुआ है।  
 
-4-
 
कंगला माला-माल बरस, 
शांति-दूत महाकाल बरस। 
 
आता-जाता है सालाना, 
मानवता को साल बरस। 
 
राजनीति के गलियारों में, 
करता ख़ूब धमाल बरस। 
 
जीने दे ना मरने दे है, 
करता अजब कमाल बरस। 
 
उत्तर की परवाह किए बिन, 
गढ़ता नए सवाल बरस
 
अपनी कथनी-करनी पर, 
करता नहीं मलाल बरस। 
 
‘तेज’ मानवीय संबंधों का, 
करता नहीं ख़्याल बरस। 
 
-5-

 
गर आँखों के आँसू शबनम बन जाएँ, 
ज़ख़्म दिए जो गए साल ने भर जाएँ। 
 
नए साल की बेला तभी सार्थक हैं, 
जो राजनीति के काले रंग बदल जाएँ। 
 
राजनीति सच सदाचरण को लील गई, 
बेहतर है गर अब भी मूल्य बदल जाएँ। 
 
कल धर्म और सत्ता ने नंगा नाच किया, 
अच्छा हो जो इनके दाग बदल जाएँ। 
 
जो दिल में दर्द उठा तो शब्द उभर आए, 
उम्मीद कहाँ पर कुछ हालात बदल जाएँ। 

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