कहने को इक साल गया है
काव्य साहित्य | गीतिका तेजपाल सिंह ’तेज’1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
कहने को इक साल गया है,
वैसे ज़िन्दा काल गया है।
लेकर ख़ाली प्याला-प्याली,
घर अपने कंगाल गया है।
सत्ता की मारा-मारी में,
पाक कभी बंगाल गया है।
भेद समन्दर की अभिलाषा,
अम्बर तक पाताल गया है।
बेपरदा हुई राजनीति कि,
इंसानी सुरा-ताल गया है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
स्मृति लेख
कार्यक्रम रिपोर्ट
सजल
साहित्यिक आलेख
- आज का कवि लिखने के प्रति इतना गंभीर नहीं, जितना प्रकाशित होने व प्रतिक्रियाओं के प्रति गंभीर है
- चौपाल पर कबीर
- दलित साहित्य के बढ़ते क़दम
- वह साहित्य अभी लिखा जाना बाक़ी है जो पूँजीवादी गढ़ में दहशत पैदा करे
- विज्ञापन : व्यापार और राजनीति का हथियार है, साहित्य का नहीं
- साहित्य और मानवाधिकार के प्रश्न
- साहित्य और मानवाधिकार के प्रश्न
कविता
सामाजिक आलेख
ग़ज़ल
कहानी
चिन्तन
गीतिका
गीत-नवगीत
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं