मौसमों की तरह, आता-जाता है बरस
काव्य साहित्य | गीतिका तेजपाल सिंह ’तेज’1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
मौसमों की तरह, आता-जाता है बरस,
जुगनुओं की तरह, जगता-सोता है बरस।
दिन को तो अन्धेरों का गुमाँ देता है,
रातों को दिन का, राग सुनाता है बरस।
अबकी बरस, तारे ज़मीं पे निकलेंगे,
कैसे-कैसे हसीं ख़्वाब, दिखाता है बरस।
धरती को नित फलने की दुआ देता है,
आसमां को समन्दर में डुबोता है बरस।
बच्चों को नये साल की टाफी देकर,
रिन्दों की गली घूमता फिरता है बरस।
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