क़दम अपने मिलाओ तुम . . .
काव्य साहित्य | कविता डॉ. पुनीत शुक्ल15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
अभी दो क्षण हुए साथी, उषा ने गान गाया था
अभी दो पल हुए पंथी, सवेरा मुस्कुराया था
अचानक बादलों ने आ तिमिर से, शून्य भर डाला
समझकर निशि न सो जाना, मशालें मैं जलाता हूँ
नई आवाज़ देता हूँ, नई मंज़िल बनाता हूँ
क़दम अपने मिलाओ तुम . . .
शहीदों के रुधिर से जो खिले हैं, फूल उपवन में
तुम्हें सौगंध है उनकी, न हिम्मत हारना मन में
गिराने दो उन्हें गोले, चलाने दो उन्हें तोपें
अँधेरा रह नहीं सकता, मशालें मैं जलाता हूँ
नई आवाज़ देता हूँ, नई मंज़िल बनाता हूँ
क़दम अपने मिलाओ तुम . . .
सिसकती झोंपड़ी को मौत ने, मरघट बनाया है
जहाँ इंसानियत को बेकफ़न, जाता जलाया है
तुम्हें सौगंध यौवन की, पसारो प्यार का आँचल
मरण को भी पिला जीवन, चिताएँ मैं जलाता हूँ
नई आवाज़ देता हूँ, नई मंज़िल बनाता हूँ
क़दम अपने मिलाओ तुम . . .
नया अभियान है माँझी, नया विश्वास तो ले लो
पड़ी मझधार में नौका, गरजती आँधियाँ झेलो
तुम्हें सौगंध यौवन की, झुका पाएँ न चट्टानें
सुनो मझधार से जयगीत मैं, तुमको सुनाता हूँ
नई आवाज़ देता हूँ, नई मंज़िल बनाता हूँ
क़दम अपने मिलाओ तुम . . .
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