नव आह्वान
काव्य साहित्य | कविता डॉ. पुनीत शुक्ल1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
अल्फ़ाज़ों की इक हरकत से, एहसास विमर्दित होता है।
जज़्बातों की इक शिरकत से, इन्सान समर्पित होता है।
प्यार के मीठे बोलों से, बालक मन हर्षित होता है।
लोरी संग मीठी थपकी से, हर प्राणी अर्पित होता है।
पीयूष बूँद के पान से यूँ, पपीहा आनंदित होता है।
माँ की इक मुस्कान से ज्यूँ, बालक आह्लादित होता है॥
आओ हिल-मिल कर रहें सभी, इक दूजे का सत्कार करें।
जब अन्दर से इक जैसे हैं, बाहर क्यूँ भेद हज़ार करें।
है समय हमें अब बुला रहा, कुछ नव-आलोकित करने को।
जात-पाँत औ धर्म-रंग की, ज़ंजीरें खंडित करने को।
तुमसे कल की पहचान बने, ऐसा कुछ आज प्रयत्न करो।
गर हो ईश्वर के तुम लेश अंश, कुछ तो यारो सत्कर्म करो॥
है समय देख ख़ुद बजा रहा, रणभेरी नये समर की यूँ।
दे रहा प्रेरणा हरने को, अंतस की कालिख की ही ज्यूँ।
हम ख़ुद-ही-ख़ुद के दुश्मन हैं, ख़ुद ही से ख़ुद लड़ना होगा।
गर संकल्प है मानवता रक्षण, अंतस का तम हरना होगा।
हर एक का अपना धर्मयुद्ध, हर एक का अपना कुरुक्षेत्र एक।
हर एक के सारथी कृष्ण बने, हर एक को प्रभु दे रहे टेक॥
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