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आर. बी. भण्डारकर – डायरी 011 – इकहत्तरवाँ जन्म दिवस

दिनांक  01 जनवरी 2022

इकहत्तरवाँ जन्म दिवस। 

किसका? 

किसी के बेटे, बेटी का, किसी के पोते, पोती का; आम तौर पर आम व्यक्तियों में यही जन्मदिन होते हैं। मेरी नज़र में इनके अतिरिक्त कुछ और अद्भुत जन्म दिवस भी होते हैं। ऐसे जन्म दिवस जिसके भी हों; जिनके भी होते हैं, कुछ विशिष्ट से होते हैं। ऐसा कोई जन्मदिन जिसका होता है उसका तो होता ही है पर यही जन्मदिवस किसी के पापा का होता है, किसी के बब्बा जी का, तो किसी के नाना जी का। 

 

+ + + + + +

 

मैं दिसम्बर के तीसरे सप्ताह के उतरते दिनों में बेटे के पास गया था; चार पाँच दिन रहा। दोनों पोतियाँ रोज़ कुछ पूछा करतीं—बब्बा जी आपको कौन सी मिठाई पसंद है? 

“महदे का कलाकंद।” 

“मुझे भी,“ मिट्ठू जी ने अपनी ऑन लाइन पढ़ाई के बीच, लेपटॉप पर ऑडियो वीडियो बंद कर किलकते हुए कहा। 

पीहू जी असमंजस में; “महदे का कलाकंद? . . . यह क्या होता है दीदू? . . . मुझे तो रोसोगुल्ला पसंद हैं।”

बब्बा जी ने पलटी मारी, “मुझे भी।”

मिट्ठू जी, “बब्बा जी आपको तो कलाकंद . . .!”

बब्बा जी हँसने लगते हैं . . .  (लगता है बब्बा जी की चाल समझ गए हैं मिट्ठू जी) . . .  मिट्ठू जी हँसने लगते हैं तो पीहू जी भी हँसने लगते हैं। 

 

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बेटे के पास आज दूसरा दिन है। 

सबेरा हुआ ही है कि मिट्ठू जी अपनी ऑन लाइन पढ़ाई में व्यस्त हो जाते हैं। पीहू जी की ऑन लाइन पढ़ाई दोपहर एक बजे से है सो वे अपनी ममा से चंदन-मन्दन करवा के, मेरे पास आकर, मुझसे बिल्कुल सटकर बैठ जाते हैं। 

“बब्बा जी आपको कौन सा चित्र पसंद है?” 

“मुझे तो मेरी रानी बिटिया और उनकी दीदू द्वारा बनाये गए सभी चित्र बहुत पसंद हैं।”

“ओके देन (okay then)”

“क्यों?” 

“मुझे और दीदू को आपके बर्थ डे के लिए ग्रीटिंग कार्ड्स बनाने हैं न?” 

मैं चौंका . . . ”ओह!”

 

+ + + + + + + + +

 

22 दिसम्बर को मैं बेटे के यहाँ से चला आया था। 

अब आज एक जनवरी है। सुबह से ही व्हाट्सएप्प पर नववर्ष 2022 के शुभ कामना सन्देश आने प्रारम्भ हो गए। किसी के सन्देश में यह भी था कि आज कलेंडर वर्ष का नववर्ष है; वास्तव में नववर्ष आगामी गुड़ी पड़वा से प्रारंभ होगा सम्वत्‌ 2079। 

बड़ी बेटी को फ़ोन किया तो उठाया पाँच वर्षीय दौहित्र जी ओम भैया ने; स्वर सुनाई दिया, “हैप्पी बर्थ डे नाना जी।”

मशीनी गति से मेरा स्वर फूटा, “थैंक यू, लव यू।”

फिर चौंका! ओह! आज मेरा जन्मदिन है? 

उधर बिटिया ने ओम भैया से फ़ोन ले लिया . . . ”हाँ पापा जी, बस मैं आ ही रही हूँ . . . ओम भैया को नाश्ता करा रही थी तो यह कह रहा था कि मैं अब कुछ नहीं खाऊँगा अब तो पार्टी में ही खाऊँगा। जब मैंने पूछा आज कहाँ, किस बात की पार्टी है? तो कहने लगा, इतना भी नहीं पता? आज नाना जी हाउस में नाना जी के जन्मदिन की पार्टी है।”

 

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मेरे मोबाइल फ़ोन की घण्टी बजी। फ़ोन उठाया, उधर मिट्ठू जी थे; स्वर रुआँसा, “बब्बा जी पापा जी ने कहा था कि शीतकालीन अवकाश है इसलिए अपुन सब लोग बब्बा जी के बर्थ डे पर भोपाल अवश्य चलेंगे पर चले ही नहीं, बहाना बनाया ज़रूरी काम है बेटा, नहीं जा सकते . . .  मैंने और पीहू ने आपके लिए बहुत से ग्रीटिंग कार्ड बनायें हैं . . . ।”

“कोई बात नहीं बिटिया कभी-कभी ऐसा हो जाता है। आप दोनों अपने ग्रीटिंग कार्ड्स वीडियो कॉल पर मुझे दिखा दो फिर उनकी फोटो खींच कर मुझे व्हाट्सएप कर दो।”

मिट्ठू जी ख़ुश। 

अब यह मिट्ठू जी का वीडियो कॉल है। तरह तरह के ग्रीटिंग कार्ड्स, एक के बाद एक . . . अब एक वीडियो आने लगा। (यह क्या?) बब्बा जी यह 2022 का पॉकेट कैलेंडर है। मैंने आपके लिए बनाया है।”

मैंने देखा कि दोनों बहिनें (पीहू जी, मिट्ठू जी) बहुत ही प्रसन्न हैं। कार्ड्स और पॉकेट कलेंडर देख कर मैं सोचता रह जाता हूँ कि इन बच्चों ने कितनी मेहनत की है इन्हें बनाने में . . .। आश्चर्य होता था यह सुनकर, देख कर कि कई विशिष्ट कलाकार चावल के एक दाने पर कुछ लिख लेते हैं या कोई आकृति बना लेते हैं। मिट्ठू जी का यह पॉकेट कलेंडर देखकर अब आश्चर्य नहीं हो रहा है . . . मुझे विश्वास हो गया है कि बब्बा जी के प्रति बच्चों का असीम स्नेह ही उन्हें जुटाए रहा इतने परिश्रम में। 

जैसे ही शाम हुई, 5 वर्षीय दौहित्र ओम भैया जी की सक्रियता बढ़ गई, “दोनों दीदू नहीं आई तो अब मुझे ही सब कुछ करना पड़ेगा।”

ओम भैया का यह डायलॉग सुनकर सब लोग ज़ोर से हँसते हैं। बड़ी बिटिया ओम भैया को खाना खिलाने का प्रयत्न करती है तो वे कहते हैं, “ममा अब खाना नहीं खाऊँगा, अब थोड़ी देर बाद केक ही खाऊँगा।”

भैया जी की ऐसी मनःस्थिति देख कर छोटी बिटिया अपनी ममा से कहती है, “पापा जी की अनिच्छा से केक तो मँगाया नहीं, अब ओम भैया के उत्साह का क्या किया जाए?” 

आनन-फानन में वैकल्पिक व्यवस्था की गई। देखें—


अब ओम भैया ख़ुश हैं क्योंकि उनके सेलिब्रेशन का लाइव दृश्य छोटी बिटिया ने वीडियो कॉल के माध्यम से उनके दीदू लोगों को भी दिखा दिया है जो। 

बच्चों में अपने बड़ों के प्रति इतना स्नेह क्यों पनपता है, कैसे पनपता है? बिटिया ने कहा यह संयुक्त परिवार का प्रतिफल है। पत्नी जी का कथन कि इनमें हमारा अंश होता है इसलिए। मेरे श्वसुर साहब कहा करते थे कि यह नौनिहाल हमारी प्राचीन वंश परम्परा हैं, यह हमारे सदियों पहले के पूर्वज ही आये हैं, इस रूप में। 

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