मेहनती चींटियाँ
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. आर.बी. भण्डारकर1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
चींटी रानी, चींटी रानी
रहती हो हरदम कुछ ढोती,
चलती रहती हो तुम हरदम
लगता है तुम कभी न सोती।
श्वेत ही श्वेत तुम्हारे अंडे
ढो कर इन्हें कहाँ ले जाती,
बिल तो बहुत बड़े, गहरे भी
फिर भी इधर उधर क्यों जाती।
बहुत बड़ी यह लाइन तुम्हारी
कुछ आती हैं तो कुछ जाती,
एक दूसरे के कानों में
चींटी रानी क्या कह जाती।
आज बताई है दादी ने
मुझे सही योजना तुम्हारी,
अभी फ़सल आने का मौक़ा
खाद्यान्न की है भरमारी।
आगे मौसम है वर्षा का
आना-जाना होगा भारी,
ढेरों अन्न इकट्ठा करती
यह वर्षा ऋतु की तैयारी।
समझ हमारी में भी आया
पक्का सबक़ तुम्हीं से पाया,
मेहनत सदा काम आती है
व्यर्थ नहीं युक्ति जाती है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
चिन्तन
सामाजिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
कविता
कहानी
कविता - क्षणिका
बच्चों के मुख से
डायरी
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 001 : घर-परिवार
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 002 : बचपन कितना भोला-भाला
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 003 : भाषा
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 004 : बाल जीवन
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 005 : वानप्रस्थ
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 006 : प्रतिरोधक क्षमता
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 007 – बाल मनोविज्ञान
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 008 – जीत का अहसास
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 009 – नाम
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 010 – और चश्मा गुम हो गया
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 011 – इकहत्तरवाँ जन्म दिवस
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 012 – बाल हँस
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 013 – ओम के रंग!
- आर. बी. भण्डारकर–डायरी 014 – स्वामी हरिदास महाराज
कार्यक्रम रिपोर्ट
शोध निबन्ध
बाल साहित्य कविता
स्मृति लेख
किशोर साहित्य कहानी
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं