चंदा मामा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. आर.बी. भण्डारकर1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
चंदा मामा, चंदा मामा
क्यों करते हो इतना ड्रामा।
कभी बहुत छोटे हो जाते
पूरा चेहरा कभी दिखाते,
घटते, बढ़ते रहते हरदम
कभी कभी ग़ायब हो जाते।
यह चालाकी नहीं चलेगी
दाल तुम्हारी नहीं गलेगी,
प्रतिदिन पूनम जैसा रहना
हम बच्चों का यही है कहना।
पूरा चेहरा हमको भाता
अंधकार इससे मिट जाता,
तारे भी उजले हो जाते
फूल कुमुदिनी के खिल जाते।
जब आते हैं सूरज दादा
क्यों छिप जाते चंदा मामा,
शरमा जाते या डर जाते
या करते हो कोई ड्रामा।
चंदा, सूरज दोनों प्यारे
हम बच्चों की फ़ौज सोचती,
निकले कोई तरीक़ा ऐसा
दोनों में हो जाये दोस्ती।
सूरज दादा से बोलेंगे
तुम भी सोचो चंदा मामा,
हम बच्चों की बात मान लो
करना मत अब कोई ड्रामा।
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डॉ. मुल्ला आदम अली 2024/05/01 11:51 PM
बहुत सुन्दर बाल कविता चंदा मामा, चंदा मामा क्यों करते हो इतना ड्रामा। बहुत खूब।