सत्य
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
यह
सभी लोगों का
अफ़सोस है
कि
सत्य
हर समय अपना
असली मुखड़ा
नहीं दिखा सकता।
अधिकार और सच्चाई की बात
चिल्लाकर बोलने पर
कोई सुनता ही नहीं;
अत्याचार के विरोध में
हाथ ऊपर कर खड़े होने के समय
पैर उसके लड़खड़ाते हैं;
असत्य और हिंसा एक साथ
सामने आने पर
वह पीछे हट जाते हैं।
इतने पर भी
अंत में
सत्य की ही जीत होती है।
हाँ, यह सत्य है
कि
सत्य को सामने आने में
थोड़ा तो वक़्त
लगता ही है
सच कभी
झूठ नहीं हो सकता है;
सात दरवाज़ों के भीतर
बंदकर रखने पर भी,
उसके चलने के पथ पर
काँटे बिछाने पर भी
सत्य को
रोक नहीं पाओगे।
सुबह सूर्य की
नवकिरण की जैसी
लाली बिखेरता हुए
सत्य सामने आता है
और मनुष्यों के मन में
आनंद लाता है!
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