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वट वृक्ष का इतिहास 

एक इतिहास 
जो लिखा नहीं गया है 
इतिहास के पन्ने पर 
और लिखा न जाएगा,
प्रतिदिन के अख़बार में भी 
जगह नहीं मिली 
टेलीविज़न पर भी 
दिखाया नहीं गया
और रेडियो पर तो 
वह आया ही नहीं।
 
गाँव के अंत 
चौराहे के 
बूढ़े ठण्डी छाँव देनेवाला वट वृक्ष
पूर्व के 
तूफ़ान से 
गिर गया
वहाँ रह रहे पक्षी
बेघर हो गए,
यह ख़बर लोगों को मालूम हुई 
पर, इस ख़बर का कोई 
मूल्य नहीं था 
इसके साथ कोई स्कैंडल 
जुड़ा नहीं था 
इसकी छाँव में 
किसी बुद्ध ने विश्राम नहीं किया था 
इसके चारों ओर 
घिरा चबूतरा नहीं था 
फिर भी 
इसका एक इतिहास था।
 
जो सूर्य देवता 
भरी दोपहर में 
ग़ुस्से से जलता था 
तब यहाँ ठण्डी छाँव रहती थी 
जब आसमान से 
मूसलधार वर्षा होती थी 
तब लोग यहाँ 
छतरी का सुख पाते थे।
 
इतिहास की पन्ने पर 
यह न लिखने पर भी 
अख़बारों में 
जगह न मिलने पर भी 
इस वट वृक्ष की कथाएँ
लोगों के मन में 
बहुत दिनों तक स्मरण रहेंगी।
 

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