नगर
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू15 Nov 2020 (अंक: 169, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
नगर में उगते नहीं हैं
चौड़े रिश्तेवाले हरे खेत
नगर में उगते हैं
तंग रिश्तेवाले
गमले के फूल
नगर में होता नहीं
सोहराय, साकरात और बाहा पर्व
नगर में होते हैं पर्व
बड़े-बड़े होर्डिंग में
दिवार पर चिपके शॉपिंग मॉल की
डिस्काउंट देनेवाली विज्ञापन पर
नगर में लोग
पूछते नहीं हाल-चाल
वे केवल अपनी ज़रूरत ही
प्रकट करते हैं
नगर में बारिश होती है
पर आता नहीं सावन
बच्चे भीगते नहीं हैं
ख़ुशी से
नगर में आम की डाली से
गाती नहीं है कोयल
नगर में न सुनाई देती है
बाँसुरी की धुन
न औरतों के गीत के बोल
नगर में होते नहीं है
मांझी1 की अखड़ा2 में
नगाड़ा और मंदार की थाप पर
युवक -युवतियों की नाच
नगर में केवल रेडियो और
टेलीविजन पर ही गाते हैं लोग
नगर को चौड़ी सड़कें और
तंग गलियों में
टहलते समय
फँस सकते हो
वहाँ की तंग दिल के
काली कीचड़ में।
1. माझी - संथाल (एक जाति) गाँव की गाँवप्रधान
2. अखड़ा - नाच गाने का जगह
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