प्यार ही तो है
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
तुमसे है प्यार
और तुम जन्म-जन्मांतर की
दोस्त हो।
तुम्हारे और मेरे
इस पवित्र प्यार के बीच
भला ग़रीबी-अमीरी का
क्या काम?
उम्र, जाति-धर्म का
क्या अर्थ?
प्यार तो कल-कल बहनेवाले
पहाड़ी झरने का पानी है
नीले आसमान की तरह अनंत
दरिया जैसा गहरा
इतना सुन्दर कि
कमल को ईर्ष्या हो,
सुगंध से
महकाता है चारों दिशाएँ।
फिर . . .
अपनी पहचान
लोगों के सामने दिखाने की
प्यार को ज़रूरत ही क्या?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अपने गाँव की याद
- आँसू की बूँद में घर की तस्वीर
- आज़ादी का सपना
- आज़ादी (चन्द्र मोहन किस्कू)
- एक शाम
- जीवन : लड़कियों का
- तुम और मैं
- तुम याद आते हो
- तुम्हारा मीठा चुम्बन
- नगर
- नव आशा की धरती
- प्यार ही तो है
- लड़कियों को बहुत काम है
- वट वृक्ष का इतिहास
- सत्य
- समय (चन्द्र मोहन किस्कू)
- स्मृति अपने गाँव की
- हम औरतें
- हुल के फूल
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं