वो बूढ़ा
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका सुनील गज्जाणी22 Feb 2014
अब भी अपना ठेला लिए
आ जाता है
मेरे शहर के एक
लुप्त हो चुके ढूँढ़ा मेले के दिन
मानो, श्रद्धांजलि देने आया हो।
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