वो (3 कविताएँ)
काव्य साहित्य | कविता सुनील गज्जाणी22 Feb 2014
1.
वो अपना प्रेम पत्र लिखने के लिए
कई पन्ने रद्दी कर चुका
और, ये बीनता रहा चूल्हे की आग के लिए।
2.
वो मन्दिर के पथ की ओर हमेशा जाता है
मगर मूर्ति के दर्शन कभी नहीं करता
रुक जाता है परिसर में
भूखों को खाना खिलाने
वृद्धों की सेवा करने
असहायों की सेवा करने
वो, ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन की चाह रखता है।
3.
पण्डित जी
छुआछूत के पक्षधर हैं
अपने प्रवचन में कहीं ना कहीं
ऐसा प्रसंग अवश्य लाते हैं
मगर
मन्दिर हरिजन बस्ती से गुज़र कर ही
आते हैं वो।
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