ज़रा बता
शायरी | नज़्म सुनील गज्जाणी22 Feb 2014
है कुछ न कुछ तो छिपा आँखों में तेरी
ख़ुशी या ग़म कोई इतना तो ज़रा बता
क्यों है डूबी आँखें तेरी इन मोतियों में
खोया या पाया कुछ मुझ को ज़रा बता
गुफ़्तग़ू कर ले आओ ज़रा बैठ कर
सिवा तेरे और क्या जहाँ में ज़रा बता
सवाल क्यों करती रहती है तेरी ये आँखें
उफ़! मिटा शक कभी तेरा तू ज़रा बता
दुहाई दे रहा हूँ पास तो आ मेरे ज़रा
यक़ीन नहीं यूँ शक की वजह ज़रा बता
इज़हार क्यों नहीं लबों पे मेरे प्यार का
मुझसा जुनूं क्यों नहीं तुझ में ज़रा बता
हिरनी सी दौड़े हैं तन में यूँ न देखिये
क्या है ऐसा नज़रों में तेरी मुझे ज़रा बता
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