एक लम्बी बारिश
काव्य साहित्य | कविता सुनील गज्जाणी22 Feb 2014
झूमता,
गाता,
नाचता,
वो बूढ़ा लोगों की परवाह किए बिना
जनता घूर घूर देखती उसे
पगला गया,
मति मारी गई
कहते गली मोहल्ले वाले उसे
बे-परवाह मस्त अपनी ही धुन में
सड़कों पे भरे पानी में काग़ज़ की नाव चलाता
भरे गड्ढों में उछल-कूद
अठखेलियाँ करता
मानो, बचपना ले आयी उसका
एक लम्बी बारिश
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