एक शाम
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू15 Jan 2020
एक शाम
स्कूटी से
ऑफ़िस से लौटते समय
सावन की बारिश ने
घेर लिया
भीगने से बचने के लिए
एक छोटी छज्जे के नीचे
आश्रय लिया।
कुछ पल में ही
बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गये थे
बारिश की डर से
भींगने से बचने के लिए
एक जन दूसरे को
जगह देते हुए।
कुछ लोगों के सर पर
पगड़ी थी
कुछ लोगों के चेहरे पर
दाढ़ी थी
कुछ लोग धोती
पहने थे
कुछ लोग केवल
लंगोटी में थे।
यह पूरा-पूरा सत्य था
कि, वहाँ हिन्दू भी थे
और मुसलमान भी
सिख भी, ईसाई भी
डोम भी थे
और कुम्हार भी
नाई भी थे और चमार भी।
पर बारिश से बचते हुए
उनके मन में
जात-पात का विचार
बिलकुल भी नहीं था
धर्म की सख़्त दीवार को
तोड़ दिया था
और छुआछूत की
बीमारी को
शरीर से निकाल फेंका था।
बहुत दिनों के बाद
उस सुनहरी शाम की बेला
मुझे बहुत अच्छा लगा था।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}