एक शाम
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
एक शाम
स्कूटी से
ऑफ़िस से लौटते समय
सावन की बारिश ने
घेर लिया
भीगने से बचने के लिए
एक छोटी छज्जे के नीचे
आश्रय लिया।
कुछ पल में ही
बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गये थे
बारिश की डर से
भींगने से बचने के लिए
एक जन दूसरे को
जगह देते हुए।
कुछ लोगों के सर पर
पगड़ी थी
कुछ लोगों के चेहरे पर
दाढ़ी थी
कुछ लोग धोती
पहने थे
कुछ लोग केवल
लंगोटी में थे।
यह पूरा-पूरा सत्य था
कि, वहाँ हिन्दू भी थे
और मुसलमान भी
सिख भी, ईसाई भी
डोम भी थे
और कुम्हार भी
नाई भी थे और चमार भी।
पर बारिश से बचते हुए
उनके मन में
जात-पात का विचार
बिलकुल भी नहीं था
धर्म की सख़्त दीवार को
तोड़ दिया था
और छुआछूत की
बीमारी को
शरीर से निकाल फेंका था।
बहुत दिनों के बाद
उस सुनहरी शाम की बेला
मुझे बहुत अच्छा लगा था।
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