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हिस्से में था अपमान मिला, विस्मृत करके देखो समक्ष

हिस्से में था अपमान मिला,
विस्मृत करके देखो समक्ष...
 
हे पथिक! न्याय के रथ पर,
निर्माण 'स्वयं' का करना;
अनुकरण सत्य के पथ का,
मन की मिथ्या को हरना।
 
किसमें साहस रोक सके
विष पिए हुए तुम शंकर हो
हे पराक्रम के मूर्त रूप
तुम कालजयी अभ्यंकर हो।
 
हिस्से में था अपमान मिला,
विस्मृत करके देखो समक्ष...
 
होते सचेत जब 'रत्नाकर',
'वाल्मीकि' कहलाते;
कालिदास की अभिव्यंजना,
'मेघदूतम्' रच जाते।
 
प्रायश्चित दया क्षमा तुममें,
अपराध-बोध से उठो वीर!
सिंहासन को ग्रहण करो,
शंखनाद कर दो गम्भीर।
 
हिस्से में था अपमान मिला,
विस्मृत करके देखो समक्ष...

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