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कोशिश (नवल किशोर)

कोशिश करता हूँ,
हर बार पूरी लगन से,
कुछ नया सोचने की,
कुछ नया करने की,
लेकिन,
मेरे सोचने मात्र से,
क्या हो सकता है,
और क्या हो सकेगा,
जब तक लोग जागेंगे नहीं,
अपने कर्तव्य को नहीं समझेंगे,
और कभी लगता है,
कर्तव्य के पहले तो,
अधिकारों की बातें होंगी,
हक की मारामारी होगी,
जो उन्हें मिल नहीं सकता,
क्योंकि हममें ही,
छिपे हैं जयचंद कई,
हर जयचंद चाहता है,
मात देना,
जागृति रूपी पृथ्वीराज को,
भ्रष्टाचार और बेईमानी के,
अचूक हथियार से,
लेकिन हो सकता है,
सत्य हार जाये,
बेड़ियों में जकड़ लिया जाये,
लेकिन इंसानियत जीवित रहेगा,
कहीं न कहीं,
मेरे या तुम्हारे,
या फिर हम सब में,
ताकि हम बने रहें,
मनुष्य आजीवन,
अपने लिए और
आने वाले असंख्य पलों के लिए।

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