चुनौती
काव्य साहित्य | कविता नवल किशोर कुमार3 May 2012
चुनौती
खुली हवा में,
निर्बाध और स्वच्छंद हो,
कृत्रितमता तज,
प्रकृति की सुंदरता को,
पल भर निहारने की।
चुनौती,
मध्यवर्ग के स्तर को,
बिना उपर नीचे किये,
निरंतर स्थिर रख,
दुनिया में ज़िंदा रह,
ज़िन्दगी से लड़ने की।
चुनौती,
बचपन की सुहानी यादों को,
लाल कपड़े में लपेट,
जीवन भर उसका,
अवलोकन कर,
मृत्यु का इंतज़ार करने की।
चुनौती,
तकलीफों को पीछे छोड़,
दुनिया के रेलमपेल में,
बिना एक दूसरे का,
सर कलम किये,
अपने लिए एक ठौर तलाशने की।
चुनौती,
नवसामंतों की भीड़ में,
अपने और परायों को,
पहचान कर,
स्वयं को गांधीवादी,
या समतावादी,
या फिर मनुष्य बने रहने की।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अब नहीं देखता ख़्वाब मैं रातों को
- अब भी मेरे हो तुम
- एक नया जोश जगायें हम
- कोशिश (नवल किशोर)
- खंडहर हो चुके अपने अतीत के पिछवाड़े से
- गरीबों का नया साल
- चुनौती
- चूहे
- जीवन का यथार्थ (नवल किशोर)
- जीवन मेरा सजीव है प्रिये
- नसों में जब बहती है
- नागफनी
- बारिश (नवल किशोर कुमार)
- बीती रात के सपने
- बैरी हवा
- मानव (नवल किशोर)
- मैं लेखक हूँ
- मोक्ष का रहस्य
- ये कौन दे रहा है यूँ दस्तक
- रोटी, कपड़ा और मकान
- वक़्त को रोक लो तुम
- शून्यता के राह पर
- सुनहरी धूप (नवल किशोर)
- सूखे पत्ते
- स्वर्ग की तलाश
- हे धर्मराज, मेरी गुहार सुनो
- क़िस्मत (नवल किशोर)
- ख़्वाहिशें (नवल किशोर)
ललित निबन्ध
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं